जल संसाधन: 15 महत्वपूर्ण प्रश्न
बोर्ड परीक्षा तैयारी के लिए जल संसाधन (अध्याय 3) - NCERT कक्षा 10 भूगोल
टॉपर बनें! दीर्घउत्तरीय प्रश्न (3 अंक) के साथ अपनी तैयारी को परखें।
जल संसाधन: दीर्घउत्तरीय प्रश्न
एनसीईआरटी कक्षा 10 भूगोल अध्याय 3 | 15 महत्वपूर्ण 3-अंकीय प्रश्न | परीक्षा तैयारी
प्रश्न 1/15 - दीर्घउत्तरीय प्रश्न
1. जल दुर्लभता क्या है और इसके मुख्य मानवीय कारण क्या हैं?
उत्तर: जब पानी की मांग उसकी उपलब्धता से अधिक हो जाती है, तो इसे जल दुर्लभता कहते हैं। इसके मुख्य मानवीय कारण हैं:
1. अतिशोषण और अत्यधिक प्रयोग: बढ़ती जनसंख्या की जरूरतों को पूरा करने के लिए जल का अत्यधिक दोहन किया जा रहा है।
2. समाज में असमान वितरण: कुछ वर्गों के पास जल की प्रचुरता है जबकि अन्य को इसकी भारी कमी का सामना करना पड़ता है।
3. जल की खराब गुणवत्ता: घरेलू और औद्योगिक अपशिष्टों, रसायनों और कीटनाशकों के मिलने से प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने के बावजूद जल मानव उपयोग के लिए अनुपयुक्त हो जाता है।
1. अतिशोषण और अत्यधिक प्रयोग: बढ़ती जनसंख्या की जरूरतों को पूरा करने के लिए जल का अत्यधिक दोहन किया जा रहा है।
2. समाज में असमान वितरण: कुछ वर्गों के पास जल की प्रचुरता है जबकि अन्य को इसकी भारी कमी का सामना करना पड़ता है।
3. जल की खराब गुणवत्ता: घरेलू और औद्योगिक अपशिष्टों, रसायनों और कीटनाशकों के मिलने से प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने के बावजूद जल मानव उपयोग के लिए अनुपयुक्त हो जाता है।
2. स्वतंत्रता के बाद भारत में हुए औद्योगीकरण और शहरीकरण ने जल संसाधनों पर दबाव कैसे बढ़ाया है?
उत्तर:
• स्वतंत्रता के बाद तीव्र औद्योगीकरण हुआ। उद्योगों को चलाने के लिए न केवल भारी मात्रा में जल की आवश्यकता होती है, बल्कि उन्हें बिजली की भी जरूरत होती है जो अक्सर जल विद्युत (hydroelectric power) से आती है।
• शहरीकरण और बढ़ती आबादी के कारण शहरों में न केवल जल की खपत बढ़ी है, बल्कि कई आवास समितियों ने अपनी जल पूर्ति के लिए निजी नलकूप लगाकर भूजल स्तर को और नीचे गिरा दिया है।
• स्वतंत्रता के बाद तीव्र औद्योगीकरण हुआ। उद्योगों को चलाने के लिए न केवल भारी मात्रा में जल की आवश्यकता होती है, बल्कि उन्हें बिजली की भी जरूरत होती है जो अक्सर जल विद्युत (hydroelectric power) से आती है।
• शहरीकरण और बढ़ती आबादी के कारण शहरों में न केवल जल की खपत बढ़ी है, बल्कि कई आवास समितियों ने अपनी जल पूर्ति के लिए निजी नलकूप लगाकर भूजल स्तर को और नीचे गिरा दिया है।
3. जवाहरलाल नेहरू बहुउद्देशीय परियोजनाओं (बाँधों) को 'आधुनिक भारत के मंदिर' क्यों कहते थे?
उत्तर: जवाहरलाल नेहरू का मानना था कि नदी घाटी परियोजनाएँ भारत के विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं। उनका विचार था कि इन परियोजनाओं के कारण कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का समन्वय औद्योगीकरण और नगरीय अर्थव्यवस्था के साथ होगा, जिससे देश का समग्र विकास सुनिश्चित होगा। वे इसे विकास और समृद्धि के रास्ते पर ले जाने वाले वाहन के रूप में देखते थे।
4. बहुउद्देशीय नदी परियोजनाओं (बड़े बाँधों) के निर्माण से होने वाले प्रमुख पर्यावरणीय नुकसान क्या हैं?
उत्तर:
1. प्राकृतिक बहाव अवरुद्ध होना: बाँध नदियों के प्राकृतिक बहाव को रोक देते हैं, जिससे तलछट (sediment) का बहाव कम हो जाता है और जलाशय की तली में जमा हो जाता है।
2. जलीय जीवन पर प्रभाव: बाँध नदियों को टुकड़ों में बाँट देते हैं, जिससे जलीय जीवों का स्थानांतरण और अंडे देने की प्रक्रिया बाधित होती है।
3. वनस्पति का विनाश: बाढ़ के मैदान में बने जलाशयों में वहां की वनस्पति और मिट्टी डूब जाती है और कालांतर में सड़ (अपघटित) जाती है।
1. प्राकृतिक बहाव अवरुद्ध होना: बाँध नदियों के प्राकृतिक बहाव को रोक देते हैं, जिससे तलछट (sediment) का बहाव कम हो जाता है और जलाशय की तली में जमा हो जाता है।
2. जलीय जीवन पर प्रभाव: बाँध नदियों को टुकड़ों में बाँट देते हैं, जिससे जलीय जीवों का स्थानांतरण और अंडे देने की प्रक्रिया बाधित होती है।
3. वनस्पति का विनाश: बाढ़ के मैदान में बने जलाशयों में वहां की वनस्पति और मिट्टी डूब जाती है और कालांतर में सड़ (अपघटित) जाती है।
5. प्राचीन भारत में जल संरक्षण के लिए अपनाई गई किन्हीं तीन प्रमुख कृतियों का उल्लेख करें।
उत्तर:
• ईसा से एक शताब्दी पूर्व, इलाहाबाद के पास शृंगवेरा में गंगा नदी की बाढ़ के जल को संरक्षित करने के लिए एक उत्कृष्ट जल संग्रहण तंत्र बनाया गया था।
• चंद्रगुप्त मौर्य के समय में बड़े स्तर पर बाँध, झील और सिंचाई तंत्रों का निर्माण किया गया था।
• 14वीं शताब्दी में, इल्तुतमिश ने दिल्ली के सिरी फोर्ट क्षेत्र में जल की सप्लाई के लिए 'हौज खास' (एक विशिष्ट तालाब) बनवाया था।
• ईसा से एक शताब्दी पूर्व, इलाहाबाद के पास शृंगवेरा में गंगा नदी की बाढ़ के जल को संरक्षित करने के लिए एक उत्कृष्ट जल संग्रहण तंत्र बनाया गया था।
• चंद्रगुप्त मौर्य के समय में बड़े स्तर पर बाँध, झील और सिंचाई तंत्रों का निर्माण किया गया था।
• 14वीं शताब्दी में, इल्तुतमिश ने दिल्ली के सिरी फोर्ट क्षेत्र में जल की सप्लाई के लिए 'हौज खास' (एक विशिष्ट तालाब) बनवाया था।
6. 'नर्मदा बचाओ आंदोलन' क्या है और इसका लक्ष्य समय के साथ कैसे बदला है?
उत्तर: 'नर्मदा बचाओ आंदोलन' एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) है जो गुजरात में नर्मदा नदी पर बन रहे सरदार सरोवर बाँध के विरोध में स्थानीय लोगों, किसानों और पर्यावरणविदों को एकजुट करता है।
शुरुआत में इसका ध्यान मुख्य रूप से जंगलों के डूबने जैसे पर्यावरणीय मुद्दों पर था, लेकिन बाद में इसका लक्ष्य विस्थापित गरीब लोगों को सरकार से पूर्ण पुनर्वास सुविधाएँ दिलाना हो गया।
शुरुआत में इसका ध्यान मुख्य रूप से जंगलों के डूबने जैसे पर्यावरणीय मुद्दों पर था, लेकिन बाद में इसका लक्ष्य विस्थापित गरीब लोगों को सरकार से पूर्ण पुनर्वास सुविधाएँ दिलाना हो गया।
7. राजस्थान के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में वर्षा जल संग्रहण के लिए 'टांका' प्रणाली क्या है?
उत्तर: राजस्थान के बीकानेर, फलोदी और बाड़मेर जैसे क्षेत्रों में पीने का पानी जमा करने के लिए घरों के अंदर भूमिगत टैंक बनाए जाते हैं, जिन्हें 'टांका' कहते हैं।
• यह मुख्य घर या आंगन में बनाया जाता है और छत से पाइप के जरिए जुड़ा होता है।
• इसमें वर्षा का पानी अगली वर्षा ऋतु तक सुरक्षित रखा जा सकता है। यह पानी का शुद्धतम रूप माना जाता है जिसे 'पालर पानी' कहा जाता है।
• यह मुख्य घर या आंगन में बनाया जाता है और छत से पाइप के जरिए जुड़ा होता है।
• इसमें वर्षा का पानी अगली वर्षा ऋतु तक सुरक्षित रखा जा सकता है। यह पानी का शुद्धतम रूप माना जाता है जिसे 'पालर पानी' कहा जाता है।
8. पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में जल संग्रहण की पारंपरिक विधि 'गुल' या 'कुल' क्या है?
उत्तर: पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों, विशेषकर पश्चिमी हिमालय में, लोगों ने कृषि के लिए 'गुल' अथवा 'कुल' जैसी वाहिकाएँ बनाई हैं। ये वाहिकाएँ नदी की धारा का रास्ता बदलकर पानी को खेतों तक सिंचाई के लिए ले जाने का काम करती हैं। यह विधि पहाड़ी ढलानों पर जल को नियंत्रित करने और कृषि के लिए उपयोग करने की एक प्रभावी तकनीक है।
9. मेघालय की 'बाँस ड्रिप सिंचाई प्रणाली' की कार्यविधि समझाएँ।
उत्तर: मेघालय में नदियों और झरनों के पानी को बाँस के पाइपों द्वारा एकत्रित करके सिंचाई करने की 200 साल पुरानी विधि है।
• इसमें पानी को गुरुत्वाकर्षण के जरिए सैकड़ों मीटर दूर ले जाया जाता है।
• अंत में, बाँस के पाइपों से पानी का बहाव नियंत्रित करके उसे 20 से 80 बूंद प्रति मिनट तक घटाकर सीधे पौधे की जड़ों पर छोड़ दिया जाता है। यह पानी की बर्बादी को रोकता है।
• इसमें पानी को गुरुत्वाकर्षण के जरिए सैकड़ों मीटर दूर ले जाया जाता है।
• अंत में, बाँस के पाइपों से पानी का बहाव नियंत्रित करके उसे 20 से 80 बूंद प्रति मिनट तक घटाकर सीधे पौधे की जड़ों पर छोड़ दिया जाता है। यह पानी की बर्बादी को रोकता है।
10. कर्नाटक के गंडाथूर गाँव ने जल संरक्षण के क्षेत्र में क्या उदाहरण पेश किया है?
उत्तर: कर्नाटक के मैसूरु जिले के गंडाथूर गाँव में ग्रामीणों ने अपने घरों में जल की आवश्यकता को पूरा करने के लिए छत वर्षाजल संग्रहण की व्यवस्था की है।
• गाँव के लगभग 200 घरों में यह व्यवस्था है।
• यहाँ वर्षा जल संग्रहण की दक्षता 80% है और यह गाँव 'वर्षा जल संपन्न' गाँव के रूप में प्रसिद्ध है।
• गाँव के लगभग 200 घरों में यह व्यवस्था है।
• यहाँ वर्षा जल संग्रहण की दक्षता 80% है और यह गाँव 'वर्षा जल संपन्न' गाँव के रूप में प्रसिद्ध है।
11. अंतर्राज्यीय जल विवाद क्यों उत्पन्न होते हैं? एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर: अंतर्राज्यीय जल विवाद मुख्य रूप से बहुउद्देशीय परियोजनाओं की लागत और लाभों के बंटवारे को लेकर होते हैं। जब एक राज्य नदी के बहाव को नियंत्रित करता है, तो दूसरे राज्यों के लिए पानी की उपलब्धता प्रभावित होती है।
उदाहरण: कृष्णा-गोदावरी विवाद की शुरुआत तब हुई जब महाराष्ट्र सरकार ने कोयना पर जल विद्युत परियोजना के लिए बाँध बनाकर पानी की दिशा बदल दी। इससे कर्नाटक और आंध्र प्रदेश ने आपत्ति जताई।
उदाहरण: कृष्णा-गोदावरी विवाद की शुरुआत तब हुई जब महाराष्ट्र सरकार ने कोयना पर जल विद्युत परियोजना के लिए बाँध बनाकर पानी की दिशा बदल दी। इससे कर्नाटक और आंध्र प्रदेश ने आपत्ति जताई।
12. सिंचाई के स्वरूप में आए बदलाव ने सामाजिक परिदृश्य और मृदा को कैसे प्रभावित किया है?
उत्तर:
• मृदा पर प्रभाव: सिंचाई के कारण किसानों ने वाणिज्यिक और अधिक पानी वाली फसलों की ओर रुख किया है, जिससे मृदा में लवणीकरण (salinization) जैसी गंभीर पारिस्थितिक समस्याएँ बढ़ी हैं।
• सामाजिक प्रभाव: इसने अमीर भूस्वामियों और गरीब भूमिहीनों के बीच की खाई को और चौड़ा कर दिया है, जिससे सामाजिक संघर्ष पैदा हो रहे हैं क्योंकि जल के बंटवारे को लेकर तनाव बढ़ता है।
• मृदा पर प्रभाव: सिंचाई के कारण किसानों ने वाणिज्यिक और अधिक पानी वाली फसलों की ओर रुख किया है, जिससे मृदा में लवणीकरण (salinization) जैसी गंभीर पारिस्थितिक समस्याएँ बढ़ी हैं।
• सामाजिक प्रभाव: इसने अमीर भूस्वामियों और गरीब भूमिहीनों के बीच की खाई को और चौड़ा कर दिया है, जिससे सामाजिक संघर्ष पैदा हो रहे हैं क्योंकि जल के बंटवारे को लेकर तनाव बढ़ता है।
13. वर्षा जल संग्रहण (Rainwater Harvesting) को बड़े बाँधों का एक बेहतर विकल्प क्यों माना जाता है?
उत्तर: बड़े बाँधों के विरोध और उनसे जुड़ी पर्यावरणीय समस्याओं (जैसे विस्थापन, जलीय जीवन को नुकसान, तलछट जमा होना) के कारण वर्षा जल संग्रहण को एक सामाजिक, आर्थिक और पारिस्थितिक तौर पर व्यावहारिक विकल्प माना जाता है। प्राचीन भारत में भी यह देखा गया है कि लोगों ने स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार जल संग्रहण के बेहतरीन तरीके विकसित किए थे जो पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुँचाते थे और सस्ता विकल्प प्रदान करते थे।
14. तमिलनाडु राज्य ने जल संरक्षण के लिए क्या विशेष कदम उठाया है?
उत्तर: तमिलनाडु भारत का पहला और एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ पूरे राज्य में हर घर के लिए छत वर्षाजल संग्रहण ढाँचा (Rooftop Rainwater Harvesting Structure) बनाना अनिवार्य कर दिया गया है। इस नियम का पालन न करने वाले व्यक्तियों पर कानूनी कार्यवाही का भी प्रावधान है। यह भूजल स्तर को सुधारने में बहुत प्रभावी सिद्ध हुआ है।
15. 'खादीन' और 'जोहड़' क्या हैं और ये भारत के किस क्षेत्र में प्रचलित हैं?
उत्तर: यह शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों, विशेषकर राजस्थान में अपनाई जाने वाली पारंपरिक जल संग्रहण विधियाँ हैं।
• जैसलमेर में 'खादीन' और अन्य क्षेत्रों में 'जोहड़' बनाए जाते हैं।
• इनमें खेतों में वर्षा जल को एकत्रित करने के लिए गड्ढे बनाए जाते हैं ताकि मिट्टी को सिंचित किया जा सके और उस संरक्षित नमी का उपयोग खेती के लिए किया जा सके।
• जैसलमेर में 'खादीन' और अन्य क्षेत्रों में 'जोहड़' बनाए जाते हैं।
• इनमें खेतों में वर्षा जल को एकत्रित करने के लिए गड्ढे बनाए जाते हैं ताकि मिट्टी को सिंचित किया जा सके और उस संरक्षित नमी का उपयोग खेती के लिए किया जा सके।
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धन्यवाद, जय हिंदी- जय भारत!
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